ख़ालिस्तानी आतंकवादियों के मुद्दे पर पश्चिमी देशों को उनकी गतिविधियों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए- अशोक बालियान
अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो और मिडिल ईस्ट फोरम में नीति विश्लेषण के निदेशक माइकल रुबिन ने कहा है कि खालिस्तानी मूवमेंट अमेरिका और कनाडा के लिए अस्तित्ववादी खतरा पेश कर रहा है।साथ ही उन्होंने कहा कि खालिस्तानियों की गतिविधियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो को बताना होगा कि वह आतंकवाद को समर्थन नहीं करते हैं।
एक तरफ़ जब संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने 2 अगस्त 2022 को दुनिया को बताया था कि अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में सीआईए के ड्रोन हमले में अलकायदा नेता अयमान अल-जवाहिरी मार गिराया है,तो इस घटना पर ट्विटर पर एक पोस्ट में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि अल-जवाहिरी की मौत से दुनिया सुरक्षित स्थान बन गई है।
लेकिन जब भारत किसी फ़रार आतंकवादी को आतंकवादी घोषित करता है,तो ये देश उसे अपना नागरिक बताने लगते हैं और ये दूसरे देशों द्वारा घोषित किए गए आतंकवादियों को तब तक आतंकवादी नहीं मानते, जब तक कि उनका इसमें कोई हित नहीं होता।जबकि इस तरह के आतंकवादी वैध रूप से इन देशों के नागरिक नहीं होते है।
माइकल रुबिन ने यह भी कहा है कि खालिस्तानी आतंकियों ने अमेरिका के सान फ्रांसिस्को में भारत के वाणिज्य दूतावास पर दो बार हमला किया। तथा खालिस्तानी समर्थकों ने अनेक बार हिंदू मंदिरों पर हमला किया, लेकिन ये पश्चिमी देश इन हमलों को लेकर चुप्पी बरतते है।
उन्होंने आगे कहा है कि जैसे-जैसे खालिस्तानी समर्थक कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका में फैल रहे हैं, वे स्थानीय संस्थानों पर कब्जा कर, नई पीढ़ी को हिंसा की संस्कृति सिखा रहे हैं।
हमारी राय में किसी भी रूप में और किसी भी धर्म से उत्पन्न होने वाला उग्रवाद खतरा ही पैदा करता है।
तीन दशक पहले कुछ विश्लेषकों ने अलकायदा की अवधारणा को समय पर नहीं नकारा था और वह अमेरिका के लिए खतरा बन गया था। आज खालिस्तानियों को लेकर भी यही हो रहा है।खालिस्तानी उग्रवादी संगठन का विरोध करने वालों पर धार्मिक पक्षपात के वही आरोप लग रहे हैं,जो उस समय अलक़ायदा के ख़तरे के बारे में कहते थे।
भारत का वांछित आतंकवादी निज्जर कोई सामान्य व्यक्ति नहीं था, उसका हाथ भारत में अनेक आतंकवादी घटनाओं में शामिल था।
पाकिस्तान ने हमेशा कश्मीर में अशांति को बढ़ावा दिया है। सन् 1980 के दशक में, इसने पंजाब में भी विद्रोह को बढ़ावा दिया था। हिंसक आतंकवादियों ने खालिस्तान की मांग की और भारतीय राज्य के खिलाफ हिंसा की लहर फैला दी थी। शुरुआत में, आतंकवादियों ने अनेकों विधायकों, पुलिसकर्मियों और सैन्य कर्मियों की हत्या को अंजाम दिया।और फिर जल्द ही, हिंसक हमले निर्दोष नागरिकों तक फैल गए थे।भारत सरकार को स्थिति को नियंत्रण में लाने में एक दशक से अधिक का समय लगा था।
हमने पिछले वर्ष अपनी अमेरिका यात्रा में अनेकों सिखों से बात की है, वे पूरी तरह से ख़ालिस्तानी या अलगाववादियों से सहमत नहीं है।
हम उम्मीद करते है कि पश्चिमी देशों को अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो और मिडिल ईस्ट फोरम में नीति विश्लेषण के निदेशक माइकल रुबिन की बात समझ में आएगी और वे सभी देशों के घोषित आतंकवादियों के साथ एक समान राय रखेंगें।तथा उनकी आतंकवादी गतिविधियों को नज़रअंदाज़ नहीं करेंगे।